हमारा उद्देश्य

“हित का सृजन अहित का विसर्जन यही शिक्षा का लक्षण है।”

सही शिक्षा वही है जो व्यक्ति में सही और गलत के अंतर को समझने की समझ विकसित करती है। सही समय पर सही निर्णय लेने में सहायता करती है। यहाँ छात्राएँ शिक्षा के उपर्युक्त लक्षण को आत्मसात करते हुए, कर्तव्यनिष्ठा के साथ कठिन परिश्रम करते हुए, स्व–पर के हित व अहित का विवेक ज्ञान प्राप्त करती हैं यह प्रायोगिक ज्ञान उन्हें राष्ट्र, समाज एवं परिवार के कल्याण के लिए मार्गदर्शन देता है।

जन-जन के कल्याण की भावना संजोए शिक्षाविद् राष्ट्रीय संत आचार्यश्री 108 विद्यासागरजी महाराज का हृदय पाश्चात्य संस्कृति के गर्त में समाती भारतीय संस्कृति को बचाने और भारत को वापस विश्व गुरु बनाने के लिये तड़प उठा और उठाया उन्होंने बीड़ा और उनके श्रीमुख से एक स्वस्थ शिक्षा योजना का प्रतिपादन हुआ जिसके सात आधार स्तम्भ हैं :

  • स्वस्थ तन:

    स्वस्थ तन:

    निरोगी काया सबसे बड़ा सुख है। छात्राओं के मानसिक, बौद्धिक व भावात्मक विकास के लिए एक स्फूर्ति व उत्साहयुक्त स्वस्थ तन का विकास करना, जिससे उनमें ऊर्जावान तन, शारीरिक स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता, सहनशीलता जैसे गुणों का विकास हो।

  • स्वस्थ वचन:

    स्वस्थ वचन:

    वाणी अंतःकरण का दर्पण है। छात्राओं के वचन को स्व और पर हितकारी बनाना तथा उनकी भाषा को सार्थक व संयत बनाकर परिष्कृत करना, ताकि वे मातृभाषा का विकास, शब्दकोष में वृद्धि, साहित्य के प्रति रुझान, स्पष्ट उच्चारण आदि गुणों से आच्छादित हो सकें।

  • स्वस्थ मन:

    स्वस्थ मन:

    स्वस्थ मन प्रेम, कर्तव्यनिष्ठ, दया और विश्वास से परिपूर्ण होता है। छात्राओं में मैत्री, विनय, आस्था, समर्पण, सकारात्मक-दृष्टिकोण, सकारात्मक सोच, मानवता और महानता, एकाग्रता, विश्वबंधुत्व की भावना को भरना तथा उनके मन से ईर्ष्या व द्वेष को दूर करना, जिससे कि वे दृढ़ता, अनुशासन और आत्मविश्वास आदि गुणों से अपने जीवन को सफल बनायें।

  • स्वस्थ धन:

    स्वस्थ धन:

    जो अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहता है वही स्वस्थ चेतन धन है। जीवन में सत्य, न्याय, नीति, ईमानदारी से सात्विक धन का उपार्जन करना तथा सूझबूझ के साथ सम्यक् वितरण के कौशल का विकास करना। ताकि संतोष के साथ देश, धर्म, समाज व परिवार के लिए वह धन उपयोगी बने।

  • स्वस्थ वन:

    स्वस्थ वन:

    हरे भरे वृक्ष, कलरव करती नदियाँ, निर्भय पशु, कलरव करते पक्षी इस पृथ्वी का श्रृंगार है, यही स्वस्थ वन है। छात्राएँ प्रकृति से प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर, पशु-पक्षी, वन वातावरण के प्रति करुणा व दया के भाव से भरकर पर्यावरण मित्र बनें। जिससे कि देश प्राकृतिक आपदाओं से बच सके।हरे भरे वृक्ष, कलरव करती नदियाँ, निर्भय पशु, कलरव करते पक्षी इस पृथ्वी का श्रृंगार है, यही स्वस्थ वन है। छात्राएँ प्रकृति से प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर, पशु-पक्षी, वन वातावरण के प्रति करुणा व दया के भाव से भरकर पर्यावरण मित्र बनें। जिससे कि देश प्राकृतिक आपदाओं से बच सके।

  • स्वस्थ वतन:

    स्वस्थ वतन:

    शिक्षा का व्यावहारिक लक्ष्य स्वस्थ वतन है। छात्राओं को राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का ज्ञान कराना और उन्हें विश्व बन्धुत्व की भावनाओं से भरना। जिससे उनमें धर्म सहिष्णुता, नेतृत्व, एकता, राष्ट्र की अखंडता, सहनशीलता, देशभक्ति, न्यायनिष्ठा आदि गुण विकसित हों।

  • स्वस्थ चेतन:

    स्वस्थ चेतन:

    दृष्टि निर्मल हो और जिसका आचरण और ज्ञान सम्यक् हो वही स्वस्थ चेतन है। छात्राओं को श्रद्धा, ज्ञान और आचरण सम्यक् करने के लिये प्रेरित करना ताकि वे भौतिक के साथ साथ आध्यात्मिक उन्नति में सक्षम बन सकें।