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हमारा आदर्श

मनुजो मानवो भूयात्। भारतः प्रतिभारतः॥

मनुष्य बुद्धि व गुणों के विकास और संस्कारों के संवर्धन से मानव बने और भारत प्रतिभा में निमग्न हो।

सुदृढ़, सुविकसित, सुविशाल, सोने की चिड़िया और विश्वगुरू कहे जाने वाले प्राचीन भारत की सभ्यता और संस्कृति की रीढ़ थी प्राचीन शिक्षा प्रणाली। जिसमें धर्म, अर्थ, विज्ञान, व्यापार, गणित, ज्योतिष, नृत्य, संगीत, शिल्प, स्थापत्य जैसे अनेक भौतिक एवं आध्यात्मिक विषय शामिल थे। वह शिक्षा समस्याओं की जननी नहीं बल्कि समाधान करने वाली थी।

प्रतिभास्थली का लक्ष्य भी अपनी उसी प्राचीन परंपरा का अनुगमन करते हुए मानव को मानवीय मूल्य प्राप्त करने, सही अर्थों में मानव बनने, अपने शाश्वत स्वरुप को प्राप्त करने का मार्ग दिखाना है, ताकि भारत पुनः अपनी प्रतिभा में रत हो जाये, विवेक, बौद्धिक कौशल, परिश्रम एवं संस्कारों से सोने की चिड़िया बन जाये और विश्वगुरु के पद पर आसीन हो जाये ।