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जिनालय

जिनालय – “जिनेन्द्र देव का पवित्र स्थान”। मंदिर में स्थापित मूर्ति के भीतर भक्त अपनी श्रद्धा को जीवंत करते हैं और अपनी आस्था के जरिए उन्हें अपने मन में बसाए रखते हैं। जिनालय में प्रवेश करते ही जीव सुख और शान्ति का अनुभव करते हैं, पाप वर्गणाएँ, पुण्य वर्गणाओं में बदल जाती हैं।
नकारात्मक सोच का स्थान सकारात्मक सोच लेने लगती है। हम नैतिकता और मौलिकता के साथ आध्यात्मिकता की भावनाओं से ओतप्रोत हो जाते हैं और आत्मा को परमात्मा बनने का मार्ग प्रशस्त होता है।
 
 
 

श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र

श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र के प्रवेश द्वार के ऊपर श्री शांतिनाथ भगवान् का प्रतीक चिन्ह हिरण, ऐसा प्रतीत होता है मानो हिरण चौकड़ी भरते हुए अभी-अभी रुक गया हो। प्रवेश द्वार से ही प्रतिष्ठित जिनबिम्बों से युक्त उत्तुंग मानस्तंभ और द्वितीय विशाल प्रवेश द्वार दृष्टिगोचर होता है। जिससे प्रवेश करने पर अन्दर कुल 10 जिनालय और 1 मानस्तंभ हैं तथा एक और नवीन मानस्तंभ निर्माणाधीन है।
प्रथम जिनालय में भगवान् श्री शांतिनाथ जी की 13 फुट 5 इंच ऊँची बादामी वर्ण की खडगासन प्रतिमा जी हैं जिनके सर के पीछे भामंडल और ऊपर छत्र है तथा वक्ष पर श्री वत्स है। भगवान् श्री शांतिनाथ जी के दोनों पाश्वों में भगवान् श्री कुंथुनाथ जी तथा भगवान् श्री अरनाथ जी की 5 फुट 2 इंच ऊंचीं प्रतिमा जी हैं।
 

रामटेक क्षेत्र

रामटेक का शाब्दिक अर्थ निकाला जाये तो यही अर्थ निकलता है कि श्री राम जहाँ टिके। यह क्षेत्र भगवान श्री राम, महाकवि कालिदास और भोसले वंश के राजाओं की कर्मभूमि रहा है। रामचंद्र जी के वनवास काल के इस विश्रामस्थल को चिरकाल से रामटेक संज्ञा प्राप्त हुई।
सौंदर्य की पृष्ठभूमि में वे दोनों पर्वत जहाँ कालिदास ने मेघदूत काव्य की रचना की थी यहाँ हैं। वास्तुकला निर्माण में भोसले राजाओं द्वारा निर्मित अतिशयकारी श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र के उत्तुंग जिनालयों पर जिनधर्म प्रभावक ध्वजाएं सदैव आकर्षण का केंद्र रही हैं।
 
 
 
रामटेक में स्थापित ये जिनालय अपनी विशालता, निर्माणकला, वास्तुकला, मूर्तिकला, शिल्पकला आदि के समन्वय के लिए अद्वितीय हैं।
संत शिरोमणी आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महाराज के आर्शीवाद से अतिशयकारी मूलनायक 1008 श्री शांतिनाथ भगवान् के इस प्राचीन मंदिर में नींव रखी गई शिक्षा के मंदिर की। जिनालय के विशाल प्रांगण में सभी छात्राएं साथ में बैठकर एक स्वर, ताल, संगीत के साथ सुबह-शाम श्री जी की भक्ति, अर्चन, पूजन आदि करती हैं।
 

यहाँ आचार्य भगवंत श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के पांच बार 1993, 1994, 2008, 2013, 2017 में पावन वर्षायोग हुए जिससे रामटेक ही नहीं संपूर्ण महाराष्ट्र धन्य हो गया।