नकारात्मक सोच का स्थान सकारात्मक सोच लेने लगती है। हम नैतिकता और मौलिकता के साथ आध्यात्मिकता की भावनाओं से ओतप्रोत हो जाते हैं और आत्मा को परमात्मा बनने का मार्ग प्रशस्त होता है।
श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र
सौंदर्य की पृष्ठभूमि में वे दोनों पर्वत जहाँ कालिदास ने मेघदूत काव्य की रचना की थी यहाँ हैं। वास्तुकला निर्माण में भोसले राजाओं द्वारा निर्मित अतिशयकारी श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र के उत्तुंग जिनालयों पर जिनधर्म प्रभावक ध्वजाएं सदैव आकर्षण का केंद्र रही हैं।
संत शिरोमणी आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महाराज के आर्शीवाद से अतिशयकारी मूलनायक 1008 श्री शांतिनाथ भगवान् के इस प्राचीन मंदिर में नींव रखी गई शिक्षा के मंदिर की। जिनालय के विशाल प्रांगण में सभी छात्राएं साथ में बैठकर एक स्वर, ताल, संगीत के साथ सुबह-शाम श्री जी की भक्ति, अर्चन, पूजन आदि करती हैं।
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