प्रतिकूलताओं और अनिश्चितताओं में महामानव इस धरती पर आते हैं , उनके मन में प्राणी मात्र के प्रति दया पलती है, प्रत्येक जीव के कल्याण की भावना और चिंतन उनके मन में होता है । इस प्रकार सभी के पुण्योदय से राष्ट्रीयचिन्तक , शिक्षाविद् , दिगम्बराचार्य 108 आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज धरती पर आये और प्राचीन गुरुकुल शिक्षा जो लुप्त-प्राय थी उसे पुनर्जीवित किया तथा नवीन शिक्षा की कमियों को दूर करने के उद्देश्य से शिक्षा के इतिहास में एक नया अध्याय ही जोड़ दिया और इस अध्याय को गुरुमुख से नाम मिला “प्रतिभास्थली”।
संत ह्रदय की उस पवित्र भावना से 30 जून 2006 को भारत भूमि की मूक माटी ने नर्मदा के पावन तट तिलवारा घाट, जो कि मध्यप्रदेश के जबलपुर नगर में स्थित है, में आकार पाया प्राचीन व आधुनिक संस्कृति के संवाहक एक विद्यालय “प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ” का।
गुरू के गुरुकुल का और विस्तार हुआ और भारत भूमि की मूक माटी ने पुनः एक नया आकार पाया 3 दिसम्बर 2012 को छ्त्तीसगढ़ चन्द्रगिरि में।
गुरू का गुरुकुल और विस्तृत आकार लेता गया और एक वर्ष के अन्तराल में ही दिनांक 4 फरवरी 2014 में एक और प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ का शिलान्यास महाराष्ट्र रामटेक में हुआ।
अनवरत रूप से सफलता के पायदानों पर कदम बढ़ाते हुए उच्च शिखर को छूने के लिए प्रयासरत इस गुरुकुल में एक साथ दो और प्रतिभास्थली का प्रारंभ क्रमशः इंदौर तथा पपौराजी में 21 अप्रैल 2018 को हुआ।
शिक्षा का यह बीज भविष्य में वट वृक्ष का रूप लेकर अनेकों वट वृक्षों का जन्मदाता बनेगा ...