अपना घर

माँ सरस्वती और शक्ति का जहाँ वास हो,
संकटों का जहाँ नाश हो,
हर जगह जहाँ सुख शांति का वास हो,
जहाँ अपनापन, सुकून, आराम और आनंद मिले
जो है विनय, एकता और वात्सल्य से परिपूर्ण
जहाँ हमें घर जैसे अपनेपन का अहसास हो,
ऐसा घर हर पल हमारे पास हो,
प्रतिभास्थली में हमारा वास हो।
कुछ लोग कहते हैं, बेटियों का कोई घर नहीं होता, लेकिन हमारा विश्वास है कि बेटियों के बिना भी कोई घर नहीं होता।

जब बात बच्चों के चारित्र बल, आंतरिक सुरक्षा और अपूर्व व्यक्तिगत तथा व्यावहारिक योग्यता और कौशलों के विकास की आती है तब आवश्यकता होती है उन्हें प्रतिभास्थली जैसे घरों की, जहाँ शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों का भी अभूतपूर्व संयोग है।
यहाँ छात्राएं अपनों से दूर रहकर भी अपनेपन के साथ सबको अपना बनाकर, अपनों के बीच रहने का प्रयास करती हैं।

जहाँ छात्रावास में रहकर सभी छात्राएं एक साथ विनय, वात्सल्य और एकता के साथ रहना तथा प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना सकारात्मक विचारों के साथ कैसे किया जाये, अपने हर क्षण का सदुपयोग कैसे किया जाये, कैसे सम्हाला जाये स्वयं को और स्वयं की सामग्री को आदि बातें अपने घर अर्थात् छात्रावास में एक साथ रहकर सीखतीं हैं वहीं जीवन में उसको चरितार्थ भी करती हैं।

प्रतिभास्थली परिसर में स्थित छात्रावास में रहते हुए छात्राएँ प्रातःकालीन बेला से लेकर सायंकालीन संध्या तक अपने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास की समझ को बढ़ाने वाली अनेक गतिविधियों में संलग्न रहती हैं।
वैचारिक संकीर्णता के स्थान पर “वसुधैव कुटुम्बकं” की शिक्षा प्राप्त कर छात्राएं अपनी शिक्षिकाओं के साथ हिल-मिल कर रहती हैं। एक दूसरे की वैयावृत्ति करने से आपसी सहयोग की भावना जागृत होती है।
ऐसी संस्कारस्थली रूपी बगिया की ये नन्हीं नन्हीं कलियाँ रामटेक स्थित “प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ” में फलित, फूलित, पुष्पित और पल्लवित हो रही हैं अपनी प्रतिभाओं को निखार रही हैं।
यहाँ शिक्षिकाओं की छात्राओं के प्रति बस यही भावना है कि
हर कर्म का उपभान हो जाये,
तुम्हारा हर कदम, माँ भारती की शान हो जाये,
उठो साथी कलम लेकर करो कुछ सर्जना ऐसी,
तुम्हारा लेख इस युग की अमिट पहचान हो जाये।