“अनुभव से अर्जित ज्ञान सर्वोत्तम है एवं पाठ्यक्रम में इसका समावेश होना अपरिहार्य है”– आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज
ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक पक्षों में समन्वय तथा संतुलन से पाठ्यचर्या जीवनोन्मुखी बन जाती है जिसके आधार पर निश्चित की गई शिक्षा नीति एवं पाठ्यक्रम से विद्यार्थी के व्यक्तित्व का उच्चतम विकास होता है। जो विद्यार्थी को भावी परिस्थितियों में सही समय पर सही निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं। इस प्रकार शिक्षा के मुख्य अंगों – बौद्धिक, नैतिक, चारित्रिक, शारीरिक, दार्शनिक, सामाजिक, संवेदनात्मक विकास आदि को ध्यान में रखते हुए एक विशिष्ट शिक्षा योजना का निर्माण किया गया है।
विद्यार्थी जब विषय को समझ कर पढ़ता है तो वह विषय उसे रटना नहीं पड़ता तथा इससे वह तनाव रहित रहकर अपने अनुभव क्षेत्र को विस्तृत करते हुए प्रयोगात्मक शिक्षा की ओर बढ़ता है। इसी उद्देश्य से प्रतिभास्थाली में छात्राओं के शिक्षण का माध्यम मातृभाषा हिंदी रखा गया है।
राष्ट्रभाषा हिंदी में अध्ययन तथा हिंदी माध्यम उन्हें भारतीयता से जोड़ता है तो संस्कृत भाषा उनके मन में संस्कृति और सभ्यता के प्रति गौरव जागृत करती है। भविष्य में कोई भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कठिनाई की अनुभूति न हो इसीलिए यहाँ विज्ञान, गणित, भूगोल आदि विषयों के पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों भाषाओं में कराया जाता है। अंग्रेज़ी भाषा की वाक् कला में निपुण करने के लिए प्रतिदिन Spoken English classes, श्रवण कक्षा, वाद विवाद का आयोजन किया जाता है। इस प्रकार छात्राएँ यहाँ संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी इन तीनों भाषाओं में अध्ययन करती हैं ।
बौद्धिक ज्ञान के साथ साथ जीविकोपार्जन की क्षमता को बढ़ाने के लिए कुछ जीवनोपयोगी क्रियाकलाप भी सिखाए जाते हैं ताकि वे आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बनें। संध्याकाल में पाठशाला के माध्यम से आध्यात्मिकता, नैतिकता तथा मूल्यनिष्ठा का प्रवेश कराया जाता है।
आइये चलते हैं संस्कारों के साथ शिक्षा की ओर ... ।