पायसपूर्णा

हम जैसा भोजन करते हैं वैसी ही विचार धाराएँ हमारे अन्तःस्थल में उत्पन्न होती हैं। पोषक आहार जब शुद्धता और सात्विकता के साथ तैयार किया जाता है तो वह शारीरिक रुग्णता को दूर करने में औषधि का भी कार्य करता है और साथ ही मानसिक विकारों का शमन करते हुए निर्विकार व सकारात्मक सोच को भी जन्म देता है।
छात्राओं में स्वस्थ तन तथा स्वस्थ मन का विकास हो तथा शुद्ध, सात्विक और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन समय पर उपलब्ध हो इन उद्देश्यों से यहाँ एक भोजनशाला संचालित है जिसे आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ने ‘पायसपूर्णा’ नाम दिया है।

पायसपूर्णा का अर्थ है – जहाँ किसी प्रकार का अभाव नहीं होता धन और गोरस परिपूर्ण होता है। यहाँ का आहार तन को पुष्टि तो मन को संतुष्टि प्रदान करता है।

गुरुकृपा से भरित, पूरित, खचित, पल्लवित, पुष्पित इस स्थान में काम करने वाली महिलायें मातृत्व की भावना से भरकर अपने हाथों से छात्राओं के लिए भोजन तैयार करती हैं।
कार्यों में सहयोग के लिए आधुनिक तकनीकि से युक्त आधुनिक उपकरणों का भी प्रयोग किया जाता है। यह समस्त कार्य पवित्र भावनाओं से परिपूर्ण ब्रह्मचारिणी दीदियों के निर्देशन में होता है।
भोजन से पूर्व भोजन मंत्र के उच्चारण के साथ, सभी को इसी प्रकार शुद्ध, सात्विक व पोषक आहार प्राप्त हो, सभी को स्वास्थ्य लाभ हो आदि शुभ भावनाओं के साथ छात्राएं भोजन ग्रहण करती हैं तथा दीदियाँ वात्सल्य, प्रेम, मिठास के साथ छात्राओं के भोजन का ध्यान रखती हैं।