सरस्वती मंदिर

विद्यालय को मंदिर रूपी पवित्र स्थान माना जाता है। विद्यालय समाज का प्रभावशाली मार्गदर्शक तथा प्रकाश का केंद्र होता है। श्रेष्ठ समाज की स्थापना और उज्जवल भविष्य की संरचना के लिए मनुष्य में आवश्यक गुण और विशेषताओं का समावेश अत्यंत आवश्यक है। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक, चारित्रिक आदि गुणों का अभ्यास और विकास का क्रम बचपन से ही प्रारंभ हो जाता है। आवश्यकता होती है औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ अनौपचारिक शिक्षा की।
आज अनुभव के साथ-साथ ज्ञान का जमाना है और ज्ञान प्राप्त करने के लिये आवश्यकता है ऐसे स्थान की जो शहर की भौतिकता से दूर सुन्दर, मनोरम, शांत और प्राकृतिक वातावरण में स्थित हो।

ऐसे ही एक स्थान का नाम है “सरस्वती मंदिर”। जो कि प्रतिभास्थली का सर्वप्रमुख अभिन्न अंग है, जहाँ जीवन निर्वाह की नहीं, निर्माण की शिक्षा मिलती है। प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में प्रकृति की गोद में औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ छात्राओं को अनौपचारिक शिक्षा दी जाती है।

सरस्वती मंदिर रुपी इस भवन में प्राचार्या कक्ष, पुस्तकालय, अनेक कक्षा-कक्ष, दृश्य-श्रव्य कक्ष, योग कक्ष, भौतिकी विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, कम्प्यूटर, गणित, सामाजिक विज्ञान, कला आदि विषयों की प्रयोगशालाएं, पाकशाला, खेल कक्ष, सिलाई कक्ष, नृत्य व संगीत कक्ष आदि स्थित हैं।
 
शाला अवधि के दौरान छात्राओं को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य कलाओं का अनुभवी शिक्षिकाओं द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है।
विद्यालय भवन एवं अन्य साज सज्जा के साथ यहाँ की प्रमुख विशेषता है शिक्षक-शिक्षार्थी के सकारात्मक संबंध। यहाँ अनुभवी और पी.एच.डी., एम.एस.सी., एम.एड., एम.ए., एम.कॉम., एम.बी.ए., एम.सी.ए.,तथा विभिन्न कलाओं की डिग्रीओं की धारक शिक्षिकाएं अपने अनुभवों का लाभ छात्राओं को दे रही हैं।